नेत्रहीन सीईओ जिसने खड़ी कर दी 50 करोड़ की कंपनी – Inspirational Story of Blind CEO Srikanth Bolla

Amit Kumar Sachin

Updated on:

दोस्तों आज हम एक ऐसे व्यक्ति की बात कर रहे है जिसे दृष्टिहीनता के कारण बचपन से ही समाजिक भेदभाव का सामना करना पड़ा  जिसके जन्म लेते ही गांव के लोगों ने उसके माता पिता को सलाह दी थी कि यह बिना आंखों का एक बेकार बच्चा है जो आगे चल कर आप पर ही बोझ बनेगा | हम बात कर रहे हैं आंध्र प्रदेश में जन्मे Shrikant Bholla कि जिन्होंने नेत्रहीन होते हुए भी  हैदराबाद में Bollant Industries के नाम से एक कंपनी शुरू की है | श्रीकांत शतरंज और क्रिकेट जैसे खेलों के भी दृष्टिहीन श्रेणी के राष्ट्रीय खिलाड़ी रहे हैं।

Table of Contents

जन्म होते ही परिवार में छाया मायूसी का माहौल

श्रीकांत के जन्म एक ऐसे परिवार में हुआ था जिसकी वार्षिक आय 20000 से भी कम थी | श्रीकांत के जन्म के बाद  परिवार में जश्न की जगह मायूसी का माहौल था। पूरे गांव में खबर फैल चुकी थी कि बच्चे की आंखों में रोशनी नहीं है। हालांकि उनके किसान माता-पिता को इस बात को स्वीकार करने में वक्त लगा। कई डॉक्टरों के पास गए। सबने एक ही जवाब दिया, आपका बच्चा नेत्रहीन है। यह कभी नहीं देख पाएगा।

माता पिता को हर समय रहती थी श्रीकांत की चिंता

श्रीकांत का बचपन आंध्र प्रदेश के सीतारामपुरम गांव में बीता। घर की कमाई का एकमात्र स्रोत था, खेती। श्रीकांत को हमेशा से दुलार की जगह दया मिली। गांव वाले जब भी देखते, तो यही कहते, न जाने क्या होगा इस बच्चे का? कुछ लोग तो यह भी कहते कि माता-पिता को उनके पिछले जन्म की सजा मिली है। श्रीकांत जैसे-जैसे बड़े होते गए, परिवार की चिंता बढ़ती गई। मां को हमेशा डर लगा रहता, बेटा भटककर कहीं चला न जाए? कहीं गिर न जाए? एक बार किसी ने पिताजी को सलाह दी, मर जाने दो इस बच्चे को। बड़ा होकर यह परिवार के लिए बोझ बन जाएगा।

स्कूल में होता था उनसे भेद भाव 

गांव वालो की बात पर माता पिता ने कभी ध्यान नहीं दिया । श्रीकांत जब  पांच साल के हुए, तो पिताजी उन्हें अपने संग खेत ले जाने लगे। सोचा, शायद बेटा खेती-किसानी के कुछ काम सीख जाए। मगर इतने छोटे बच्चे के लिए हल चलाना या फसल काटना जैसे काम बहुत मुश्किल थे। फिर उनके पिता ने सोचा शायद यह पढ़ाई में अच्छा कर सके इसलिए उन्होंने उनका नामांकन गांव की स्कूल में जो कि उनके घर से लगभग 5 किलोमीटर दूर था उसमें करवा दिया | रोज पैदल जाना पड़ता था। स्कूल  का अनुभव काफी दुखद रहा। उन्हें क्लास की सबसे पिछली सीट पर बैठाया जाता। कोई बच्चा उनसे दोस्ती करने को तैयार नहीं था। टीचर को भी नेत्रहीन बच्चे में कोई दिलचस्पी नहीं थी। उन्हें पीटी क्लास में आने से मना कर दिया गया, क्योंकि वह देख नहीं सकते थे।

श्रीकांत बताते हैं,

तब मैं छह साल का था। कोई मेरे साथ खेलता नहीं था। टीचर को भी मुझसे मतलब नहीं था। एक बच्चे के लिए कितना असहनीय होता है यह सब। अकेलापन सबसे बड़ी सजा है। मैं यह सोचता था कि दुनिया का सबसेगरीब बच्चा मैं ही हूं, और वो सिर्फ इसलिए नहीं कि मेरे पास पैसे की कमी थी, बल्कि इसलिए की मैं अकेला था

 

एपीजे अब्दुल कलाम के लीड इंडिया प्रोजेक्ट से जुड़ने का मिला मौका 

फिर पिताजी को नेत्रहीन बच्चों के स्कूल के बारे में पता चला। वह बेटे को लेकर हैदराबाद पहुंचे और वहां उनका दाखिला करा दिया। इस स्कूल का माहौल बिल्कुल अलग था। यहां सारे बच्चे नेत्रहीन थे। उनके ढेर सारे दोस्त बन गए। यहां कोई किसी को नहीं चिढ़ाता था। नेत्रहीन बच्चों के लिए विशेष टीचर थे। कुछ ही महीने में उन्होंने पढ़ना-लिखना सीख लिया। स्कूल में उन्हें पढ़ाई के साथ क्रिकेट और शतरंज खेलने का भी मौका मिला। हर कक्षा में वह अव्वल आने लगे। दसवीं में उन्होंने स्कूल में टॉप किया। उन्हें तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम के लीड इंडिया प्रोजेक्ट से जुड़ने का मौका मिला। घरवालों की खुशी का ठिकाना नहीं था।

अंधे होने के कारण विज्ञान विषय नहीं मिल पा रहा था 

श्रीकांत में दसवीं की परीक्षा आंध्र प्रदेश स्टेट बोर्ड से 90% से ज्यादा अंकों के साथ उत्तीर्ण की थी लेकिन फिर भी बोर्ड का कहना था कि 11 में दृष्टिहीन बच्चे विज्ञान विषय को नहीं चल सकते | वह साइंस पढ़ना चाहते थे, पर नेत्रहीन होने की वजह से 11वीं में साइंस विषय नहीं मिला। श्रीकांत भड़क गए। उन्होंने स्कूल से पूछा कि वह विज्ञान क्यों नहीं पढ़ सकते? जवाब मिला कि नियम के मुताबिक, नेत्रहीन बच्चों को साइंस पढ़ाने का प्रावधान नहीं है। श्रीकांत अड़ गए। उन्होंने इस मुद्दे पर कानूनी लड़ाई लड़ी। छह महीने के बाद उन्हें विज्ञान पढ़ने की अनुमति मिल गई। टीचर और शिक्षा बोर्ड की सभी आशंकाओं को पीछे छोड़ते हुए उन्होंने 12वीं में 98 फीसदी अंक हासिल किए।

IIT के प्रतियोगिता परीक्षा में नहीं बैठने दिया गया 

लेकिन जिंदगी भी कभी-कभी मजाक कर ढंग से रुकावटों की नकल उतारने लगती है, खासकर उन लोगों के लिए जिनका कोई बड़ा उद्देश्य होता है |अब वह इंजीनिर्यंरग पढ़ना चाहते थे। मगर देश के किसी आईआईटी संस्थान में नेत्रहीन छात्र के दाखिले का प्रावधान नहीं था। उन्होंने देश के लगभग सभी प्रतिष्ठित इंजीनियरिंग कॉलेज में नामांकन के लिए आवेदन किया लेकिन सभी ने आवेदन यह कहकर लौटा दिया कि आप दृष्टिहीन हैं इसलिए आप IIT के प्रतियोगिता परीक्षा में नहीं बैठ सकते |

विदेश में लिया दाखिला

फिर उन्होंने विदेशी यूनिवर्सिटी में दाखिले का प्रयास शुरू किया। चार अमेरिकी यूनिवर्सिटी ने उनके आवेदन स्वीकार कर लिए। उन्होंने बीटेक के लिए मेसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी को चुना। एमआईटी में पढ़ने वाले वह पहले अंतरराष्ट्रीय नेत्रहीन छात्र थे। पढ़ाई पूरी होते ही उनके पास कई अमेरिकी कंपनियों के ऑफर आ गए। मगर वह तय कर चुके थे कि उन्हें स्वदेश लौटना है।

श्रीकांत कहते हैं,

मैं दूसरे की कंपनी में नौकरी नहीं करना चाहता था। मैं खुद की कंपनी बनाना चाहता था, इसलिए सोचा कि यह काम मैं अपने देश जाकर करूंगा। जब घरवालों को पता चला कि वह स्वदेश लौट रहे हैं, तो उन्हें अच्छा नहीं लगा। उनका कहना था कि अपने देश में उन्हें वही दिक्कतें झेलनी पड़ेंगी, जो वह बचपन से सहते आए हैं। दोस्तों ने भी अमेरिका में ही बसने की सलाह दी। श्रीकांत कहते हैं, जब मैं अमेरिका से वापस आने लगा, तो कई लोगों ने कहा, बेवकूफ मत बनो। यहां तक कि मेरे माता-पिता भी चाहते थे कि मैं वहीं अच्छी-सी नौकरी करूं और शादी करके अपना घर बसाऊं। मगर मैंने अपने दिल की सुनी।

50 करोंड़ टर्नओवर वाली कम्पनी के बने सीईओ

स्वदेश लौटकर उन्होंने हैदराबाद में दिव्यांगों के लिए सेंटर खोला। यह संस्थान दिव्यांगों की पढ़ाई में मदद करता है। 2012 में उन्होंने बोलेंट इंडस्ट्री की शुरुआत की। यह ऐसी  कंपनी है जिसका मुख्य उद्देश्य अशिक्षित और अपंग लोगों को रोजगार देना है | उपभोक्ताओं को पर्यावरण के अनुकूलन पैकेज सोल्यूशन का प्रदान करना है | श्रीकांत ने यह कार्य कर  उन सभी की बातों को झुठला दिया है , जिसको सामाजिक दृष्टि हीन व्यक्ति द्वारा किए जाने को महज एक कल्पना मानता है | यही नहीं इस कंपनी का सालाना टर्नओवर 50 करोड़ से भी ज्यादा का है | शुरुआती पांच साल में कंपनी ने जबर्दस्त तरक्की की। 2017 में फोब्र्स  ने उन्हें एशिया के 30 साल से कम उम्र के उद्यमियों की सूची में शामिल किया। आज पांच शहरों में उनकी कंपनी के प्लांट हैं। आज उनके पास कंपनी की चार उत्पादन इकाइयां है एक हुबली कर्नाटक में, दूसरी निजामाबाद तेलंगाना में, तीसरी भी तेलंगाना के हैदराबाद में है और चौथी जो कि सो प्रतिशत सौर ऊर्जा द्वारा संचालित होती है आंध्र प्रदेश के श्री सिटी में है जो कि चेन्नई से 55 किलोमीटर की दूरी पर है |

श्रीकांत कहते हैं -जब मैं बिना सहारे के चलता हूं, तो लोग पूछते हैं कि बिना आंखों के कैसे देख लेते हो? मैं उनसे कहता हूं कि देखने के लिए नजर नहीं, नजरिया चाहिए।

1 thought on “नेत्रहीन सीईओ जिसने खड़ी कर दी 50 करोड़ की कंपनी – Inspirational Story of Blind CEO Srikanth Bolla”

Leave a Reply