जानिए नदी में सिक्का फेंकने के पीछे का वैज्ञानिक कारण

Amit Kumar Sachin

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आपने नदियों के ऊपर से गुजरते हुए बस या ट्रैन या अन्य वाहनों में सवार लोगों को नदियों में सिक्के फैंकते हुए कई बार देखा होगा। लेकिन सिक्के फैकने वाले इन लोगों से कभी पूछा है कि वह ऐसा  क्यों करते हैं ?

बहुत से लोग नदी में सिक्का डालते है ताकि उनकी मनोकामना पूरी हो जाये या जब कभी हम  कहीं मंदिर या पवित्र सरोवर जाते है तो हम देखते है की लोग वहां कोई भी नदी होती है तो उसमे सिक्के डालते है ताकि उनकी जो भी इच्छा है वो पूरी हो जाये। लेकिन आपको पता है इसके पीछे असल लॉजिक क्या है…तो चलिए आज हम आपको बताते है की इसके पीछे वैज्ञानिक कारण भी है |

प्राचीनकाल से है चलन में

माना जाता है कि यह परम्परा जब भगवान राम चौदह वर्ष का वनवास काट कर लौटे थे। जब सीता मां ने सरयू नदी में स्वर्ण मुद्राए अर्पित की थी। तभी से प्रथा चली आ रही है। नदियों में सिक्के डालने का प्रचलन मुगलकाल में भी शुरू होने के प्रमाण मिले है। मुगलकाल में एक बार नदियों का पानी इस कदर दूषित हो गया था कि स्नान मात्र से ही तमाम बीमारियाँ घेर लेती थी। जहरीले हो चुके पानी को शुद्ध करने के लिए मुगल शासकों ने जनता से नदियों, तालाब, जलाशयों में तांबे ,चाँदी के सिक्के डालने का हुक्म दिया था। ताकि धातुओ के मिश्रण से नदियों का पानी शुद्ध हो जाए।

जल को शुद्ध करने की अद्भुत क्षमता

दरअसल ये परम्परा बहुत पुरानी  है , उस समय  तांबे के सिक्के हुआ करते थे। तांबा को शुद्घ धातु माना जाता है |  इसलिए इनका इस्तेमाल पूजा-पाठ में किया जाता है। तांबा सूर्य का धातु माना जाता है और यह हमारे शरीर के लिए भी आवश्यक तत्व है। वैज्ञानिक भी यह बात मानते है की ताम्बे में पानी को शुद्ध करने की अद्भुत क्षमता होती है |  प्राचीन समय में लोग तांबे का सिक्का पानी में फेंककर सूर्य देव और अपने पितरों को यह बताते थे  कि हे देव और हे पितर हमने जल के माध्यम से अपने शरीर की रक्षा योग्य तांबा ग्रहण कर लिया है। हमें यह आपके माध्यम से प्राप्त हुआ है इसलिए आभार स्वरुप आप भी जल के माध्यम से तांबा ग्रहण करें। इसलिए तभी से नदी या प्राचीन मंदिरों में बने जलाशय में सिक्का डालने का प्रचालन है |

लाल किताब में भी इसका जिक्र

लाल किताब में भी सूर्य और पितरों को प्रसन्न करने के लिए तांबे को बहते जल में प्रवाहित करने का विधान बताया गया है। हालांकि अब तांबे के सिक्के नहीं होते हैं। स्टेनलेस स्टील के सिक्कों को उसी परंपरा के तौर पर अब लोग में पानी में फेंकते हैं। जबकि वैज्ञानिक दृष्टि यह कहती है कि,जल में तांबे के सिक्के डालने से जल शुद्ध होता है और उस जल को पीने से अनेक बीमारियों का नाश स्वतः ही हो जाता है | स्टील के बने सिक्के में पानी को शुद्ध करने का कोई गुण मौजूद नहीं होता है | पहले के बहुत सारे  लोग इसलिए ताम्बे के बर्तन में पानी पीते थे ताकि जल भी शुद्ध हो जाये और उनके शारीर के लिए आवश्यक तम्बा भी मिल जाये | तांबायुक्त पानी शरीर के विषैले तत्व को बाहर निकलता है।त्वचा चमकीली व स्वस्थ रहती है। इसमें एंटी आक्सीडेटस होते है। जो कि कैंसर से लड़ने मे सहायक होते है।

वर्तमान के सिक्के को डालने पर कैसर का खतरा 

वर्तमान सिक्के में 83 प्रतिशत लोहा और 17 प्रतिशत क्रोमियम होता है। क्रोमियम एक जहरीली धातु है। क्रोमियम दो अवस्था में पाया जाता है, एक सीआर (3) और दूसरा सीआर (4). पहली अवस्था जहरीली नहीं मानी गयी है, बल्कि क्रोमियम (4) की दूसरी अवस्था 0.05% प्रति लीटर से ज्यादा जहरीली है, जो सीधे तौर पर कैंसर जैसी असाध्य बीमारी को जन्म देती है। दरअसल हम आस्था अंध विश्वास के नाम पर  नदियों में आज के आधुनिक सिक्के डालकर न केवल उसे प्रदूषित कर रहे है बल्कि जाने अनजाने में कैंसर को बुलावा दे रहे है।

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