जीतू राय का जीवन परिचय | Jitu Rai Shooter Biography In Hindi

Amit Kumar Sachin

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जीतू राय का जीवन परिचय | Jitu Rai Shooter Biography In Hindi

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एक चरवाहे से भारत के सफलतम निशानेबाज तक का सफ़र 

दोस्तों आज हम बता रहे है  एक ऐसे शख्स के बारे में जिसका जन्म तो नेपाल में हुआ था लेकिन वो खुद को भारतीय मानता है | जो नेपाल के एक गाँव में बकरी चराने और अपनी माँ के साथ खेती का काम करते थे | लेकिन आज भारत के सफलतम निशानेबाज है | जी हम बात कर रहे है विश्वकप निशानेबाजी में स्वर्ण पदक दिलाने वाले खेल रत्न जीतू राय के बारे में | पढ़िए जीतू राय की बायोग्राफी ……………

जन्म 

जीतू राय का जन्म 26 अगस्त सन 1987 को नेपाल के संखुवासभा जिले  के एक छोटे से गांव  में हुआ था | जीतू का बचपन जंगलों और खेतों में बकरी चराते हुए बीता। परिवार का गुजर बसर खेती  से होता था | कुछ समय बाद जीतू के पिताजी को भारतीय सेना के गोरखा राइफल्स रेजिमेंट में नौकरी मिल गई और वह भारत आ गए | पर परिवार नेपाल में ही रहा।  5 भाई बहनों में जीतू चौथे नंबर पर आते थे  | इन पांच बच्चो की परवरिश की जिम्मेदारी अब की माँ पर थी |

खेतो में करते थे माँ की मदद 

उनकी माँ पढ़ी लिखी नहीं थी पर उनमे गजब का हौसला था | सुबह जल्दी उठती और खाना पकाकर बच्चो को स्कूल भेज देती | फिर खेतो में बुआई ,सिंचाई ,कटाई के कामो में लग जाती | हालाँकि स्कूल गाँव से बहुत दूर थे और पैदल आने जाने में गाँव के बच्चो को थकान हो जाती थी | फिर भी जीतू स्कूल से लौटने के बाद खेतो में माँ की मदद करते थे |

जीतू बताते है –

हम आलू और धान उगाते थे। वहां की जमीन इस फसल के लिए अच्छी थी। खेती में कड़ी मेहनत थी। बारिश हो या कड़ी धूप, मां खेतों में जुटी रहतीं। वह कभी नहीं थकतीं, क्योंकि वह जानती थीं कि उसी फसल से उनके बच्चों का पेट भरेगा। उन्होंने हम भाई-बहनों को हमेशा अनुशासन में जीना सिखाया।  

पढने का नहीं मिल पता था समय 

गाँव और स्कूल के बिच लम्बी दुरी और जंगली रास्ता होने के कारण जीतू को पढने के लिए बहुत कम समय मिला पता था |जीतू बताते है – मुझे बचपन में पढ़ने का समय नहीं मिलता था। किसी तरह दौड़ते-भागते स्कूल पहुंचता, वापस आता, तो मां कहतीं कि बकरी चराने जाओ। हम बासी भात खाकर गुजारा करते थे। वैसे यह कोई अजीब बात नहीं थी, बाकी गांव वाले भी ऐसी ही जिंदगी जीने को मजबूर थे।

पिता की मौत से परेशां हो गया परिवार 

पापा को देखकर जीतू के मन में भी सेना में भारती होने की लालसा जगी | लेकिन उसने यह बात घरवालो  को नहीं बतायी  | तभी अचानक 2016 में दुखद खबर आई की जीतू के पापा नहीं रहे | परिवार में कोहराम मच गया | तब जीतू  की उम्र 19 साल  की थी | जीतू ने तय किया की वो भी भारत जायेंगे और अपने पापा की तरह फ़ौज में भारती होंगे |यह बात सुनकर उनकी माँ परेशान हो उठी | वह अपने पति को गँवा चुकी थी और अब वो अपना बेटा  नहीं खोना चाहती थी | लेकिन जीतू माँ को समझाने में सफल रहे क्युकी परिवार की बेहतरी के लिए जीतू को सेना में जाना जरुरी था |

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जीतू बताते है –

पापा के निधन के बाद मैंने तय किया कि उनकी तरह मैं भी गोरखा रेजिमेंट में सेवा करूंगा। पर मन में आशंका भी थी कि पता नहीं, चयन होगा या नहीं। पहली ही कोशिश में चयन हो गया। मेरे लिए यह बहुत बड़ी बात थी।

पढाई दोबारा की शुरू 

सेना में आने के बाद जीतू ने अपने फिटनेस पर ध्यान देना शुरू किया | जीतू ने दोबारा पढाई शुरू की और देवी अहिल्या विश्वविद्यालय (DAVV) इंदौर मध्यप्रदेश से स्नातक की  परीक्षा पास की |  गोरखा रेजिमेंट में बतौर सिपाही भर्ती हुए और अपनी योग्यता के बूते जीतू नायब सूबेदार बन गए।

एशियाई गेम्स में जीता सवर्ण पदक 

जीतू ने वर्ष 2010 में पहली बार सेना की निशानेबाजी टीम में जगह बनायीं पर प्रदर्शन अच्छा नहीं होने के चलते उन्हें वापस यूनिट भेज दिया गया | लेकिन जीतू कहा हिम्मत हरने वाले थे ? उन्होंने जबरदस्त तैयारी की और उन्हें दोबारा 2011 में टीम की तरफ से खेलने का मौका मिला। हालाँकि   2011 के राष्ट्रीय खेलों में जीतू को उत्तर प्रदेश की तरफ से खेलने का भी मौका मिला  पर उन्हें असली सफलता  2014 के एशियाई खेलों में मिली | जीतू ने 50 मीटर मेंस पिस्टल  में देश को गोल्ड मेडल दिलाया। दक्षिण कोरिया के इन्चेओन (Incheon) में हुए “एशियाई गेम्स” में जीतू ने 50m पिस्टल स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीता | उन्होंने आदमियों की 10m एयर पिस्टल टीम स्पर्धा में कांस्य पदक भी जीता |

वर्ल्ड कप में 2 पदक जितने वाले पहले भारतीय बने 

2014 में म्युनिक (Munich) में हुए “ISSF वर्ल्ड कप” में इन्होंने 10m एयर पिस्टल स्पर्धा में रजत पदक जीता. इसके बाद मनिबोर में जीतू ने 50m पिस्टल स्पर्धा में रजत और 10m पिस्टल स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीते |  इस तरह वर्ल्ड कप के 9 दिनों में इन्होंने 3 पदक जीते और भारत के लिए एक वर्ल्ड कप में 2 पदक जीतने वाले ये पहले खिलाड़ी बने |

माँ को नहीं था पता 

अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट के दौरान लंबा समय विदेश में गुजरने लगा और जीतू के जीत का सिलसिला चल पड़ा | इधर बेटा निशानेबाजी में व्यस्त था, उधर मां गांव में खेती-किसानी में।   गांव में रह रही मां को पता ही नहीं चला कि बेटा इतना मशहूर निशानेबाज बन गया है।  2015 में उन्हें अर्जुन अवॉर्ड देने की घोषणा हुई। जीतू मां को लेकर दिल्ली आए। मां ने पहली बार ऐसा भव्य समारोह देखा। जब बेटा राष्ट्रपति के हाथों अवॉर्ड लेने मंच पर पहुंचा, तो पूरा हॉल तालियों से गूंज गया। यह नजारा देखकर मां को बिश्वास ही नहीं हो रहा था की उनका बेटा  इतना तरक्की कर गया है |

जीतू कहते हैं-

मां आज भी गांव में रहती हैं। उन्हें बस इतना पता था कि मैं सेना में हूं। यह नहीं मालूम था कि मैं निशानेबाज हूं। गांव में टीवी न था। अखबार वह पढ़ नहीं सकतीं। मैंने सोचा था कि खूब नाम कमा लूंगा, तब मां को बताऊंगा। 

खेल रत्न पुरस्कार से सम्मानित 

सन 2016 के रियो ओलंपिक में जीतू राय ने 10m एयर पिस्तौल स्पर्धा में बहुत अच्छा प्रदर्शन किया | वे फाइनल तक भी पहुंचे, किन्तु फाइनल में उनका प्रदर्शन ज्यादा अच्छा नही रहा और वे 8वें स्थान में पहुंच कर, बिना किसी पदक के वापस लौट गए | हाल में जीतू ने साथी निशानेबाज हिना सिन्धु  के साथ खेलते हुए आईएसएसएफ विश्व कप की दस मीटर एयर पिस्टल स्पर्धा में रूस को हराकर गोल्ड मेडल जीता।

जीतू कहते हैं-

मैं नेपाल में पैदा हुआ, पर अब भारत मेरा असली घर है। यहां मुझे निशानेबाजी सीखने का मौका मिला। यहां मैंने भरपूर प्यार और सम्मान कमाया। उन सभी लोगों का शुक्रिया, जिन्होंने मुझे आगे बढ़ने का रास्ता दिखाया, मेरी मदद की।

 

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