बेटी के सम्मान में एक पौधा लगाने के अभियान के जनक -हरपाल सिंह

Amit Kumar Sachin

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हरपाल सिंह (HARPAL SINGH ) 

सेव द चिल्ड्रन, इंडिया के चेयरमैन

 
हरपाल सिंह (HARPAL SINGH )   सेव द चिल्ड्रन, इंडिया के चेयरमैन

दोस्तों आज हम बता रहे है  मशहूर हॉस्पिटल चेन के चेयरमैन और नन्ही छाह फाउंडेशन के संस्थापक हरपाल सिंह के बारे में जो पिछले एक दशक से पर्यावरण और महिला कल्याण के अभियान में जुटे हैं। वह सेव द चिल्ड्रन, इंडिया के चेयरमैन भी हैं। 

शुरू से ही मन में थी कुछ करने की तमन्ना 

हरपाल सिंह के मन में शुरू से पर्यावरण और बेटियों के लिए कुछ करने की तमन्ना थी। लेकिन उन्होंने  कभी नहीं सोचा था कि इस दिशा में कुछ खास कर पाएंगे ।उनके जीवन में एक ऐसी घटना घटी जिसने उनकी जिंदगी को नयी दिशा दी   उनका  मानना है कि जीवन में कुछ भी यों ही अचानक नहीं हो जाता। हर घटना के पीछे कोई न कोई मकसद जरूर होता है। खयाल नेक हो, तो सही रास्ता मिल ही जाता है

एक घटना ने बदला जिन्दगी का लक्ष्य 

 
यह घटना  जून, 2001 की है।   हरपाल सिंह  स्वर्ण मंदिर गए थे  उन्हें  अपने एक दोस्त से मिलना था। उसे आने में देर हो गई थी, इसलिए वह  मंदिर के बाहर इंतजार कर रहे थे । दोपहर का समय था, काफी तेज धूप थी। इसलिए वह पास के एक खाली पार्क में चले गए । लेकिन वह पार्क पूरी तरह वीरान वीरान था । वहां हरियाली नाम की कोई चीज नहीं थी। उन्होंने  सोचा  कि स्वर्ण मंदिर के पास ऐसी वीरान जगह नहीं होनी चाहिए।उनके  मन में आया, क्यों न इस जमीन को हरा-भरा बनाया जाए। उन्हीने अपने दोस्तों से बात की। वे उनकी  मदद करने को राजी हो गए, लेकिन इसके लिए उन्हें सरकारी विभाग की अनुमति की जरूरत थी। हमारे देश में अच्छा काम करना भी आसान नहीं होता। जाहिर है, यहां हर काम में प्रशासनिक अड़चनों का सामना करना पड़ता है। खैर, इन सबके बावजूद उन्होंने  आवेदन किया और छह महीने बाद ही उन्हें अपना काम शुरू करने की अनुमति भी मिल गई। सभी इस नेक कम  में जुट गएऔर अपना  पूरा-पूरा सहयोग दिया। आज अगर आप उस वीरान स्थान पर जाएं, तो वहां एक खूबसूरत, हरा-भरा पार्क देख सकते हैं।
नन्ही छाह

एक रविवार की सुबह हरपाल सिंह के  मन में खयाल आया कि क्यों न इस हरियाली अभियान को बेटियों के कल्याण से जोड़ा जाए। आखिर पौधा और बेटी, दोनों ही जननी हैं। एक प्रकृति को जन्म देता है, और दूसरी मानवता को। वे  सोचने लगा कि पौधा लगाने के अभियान को बेटियों से कैसे जोड़ा जाए। तभी खयाल आया कि अगर हर व्यक्ति बेटी पैदा होने पर एक पौधा लगाए, तो हमारे आस-पास की दुनिया कितनी खूबसूरत हो जाएगी। आइडिया क्लिक कर गया। उन्होंने  तय किया कि वह लोगों को इस बात के लिए प्रेरित करेंगे  कि वे अपने परिवार में बेटी पैदा होने पर एक पौधा लगाने का संकल्प लें। अब सवाल था कि इस अभियान को क्या नाम दिया जाए? उन्होंने अपनी पत्नी से बात की। उनकी पत्नी को भी उनकी यह बात बहुत पसंद आई उन्होंने ही उनके इस अभियान का नाम  नन्ही छाया सुझाया । हरपाल सिंह को भी  ये नाम नाम भा गया। नन्ही का मतलब बेटी और छाया का मतलब पौधा।
http://www.nanhichhaan.com/
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सभी धर्म के लोगो ने अपनाया उनका विचार 
 
स्वर्ण मंदिर के पास के पार्क को बहुत खूबसूरती से विकसित करने के बाद हरपाल सिंह के मन में विचार आया  कि हरियाली सिर्फ गुरुद्वारे के पास क्यों।  दूसरे धर्मों के बीच भी नन्ही छांव का प्रसार किया जाना चाहिए । इसलिए हरपाल सिंह ने  सभी धर्मो के प्रमुखों को एक मंच पर बुलाया। शुरुआत में डर लगा रहा था कि कहीं कुछ गड़बड़ न हो जाए। पर ये सारी आशंकाएं दूर हो गईं, जब तमाम धार्मिक नेता एक मंच पर एकत्र हुए। हिंदू, मुसलमान, सिख, ईसाई, यहूदी और जैन धर्मों के नेता एक मंच पर जुटे। हमने पर्यावरण और बेटियों के कल्याण पर चर्चा की। वे सब इस विचार से बहुत उत्साहित थे। सबने कहा कि वे नन्ही छांव अभियान को अमल में लाएंगे। उनका समर्थन पाकर हमारा उत्साह और बढ़ गया।हमने  उनसे कहा कि आप इस विचार को आगे बढ़ाने के लिए और सुझाव दें। यह अनुभव काफी सुखद रहा।

बेटी के जन्म पर पौधा लगाने का दिया संकल्प 

हरपाल सिंह ने  तय किया कि  इस अभियान को स्कूलों, अस्पतालों, सरकारी विभागों और औद्योगिक संस्थानों तक भी लेकर जाना चाहिए ।हरपाल सिंह कहते है – मुझे यह बताते हुए खुशी हो रही है कि दर्जनों संस्थानों ने इस अभियान को अपनाया है। एक अस्पताल ने तय किया कि वह अपने यहां बेटी पैदा करने वाली हर मां एक पौधा गिफ्ट करेगा। कई और अस्पतालों ने इस विचार को अपनाया। पंजाब और राजस्थान में तमाम स्कूलों ने गांवों को गोद लिया है, जहां वे पेड़ लगाने के साथ ही ग्रामीणों को बेटियों के कल्याण के बारे में जागरूक भी करते हैं।

बचपन में मिली प्रेरणा

हरपाल सिंह अपने पिता का इकलौता बेटे  थे । उनके दोनों चाचा का कोई बेटा नहीं था  इसलिए उन्हें अपनी तीनों माताओ  से भरपूर प्यार-दुलार मिला।वे कहते है – हमारे परिवार में हम भाई-बहनों के बीच कभी भेदभाव नहीं हुआ। सच कहूं, तो तीन माओं के दुलार और चार बहनों के प्यार ने मुझे महिलाओं के प्रति बहुत संवेदनशील बनाया। बचपन से बेटियों के लिए कुछ करने की तमन्ना थी। नन्ही छांव अभियान ने उस ख्वाहिश को पूरा किया है। आज मेरी तीन पोतियां हैं, जिनसे मैं बहुत प्यार करता हूं।  मैं यह उम्मीद करता हूं कि आप सभी अपनी बेटी के नाम पर पौधे जरूर लगाएंगे।
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